हाँ बेशक
तुम्हे खोकर उस शाम
मैंने तुमसे कहा था
तुम जैसी बहुत मिलेंगी
पर सच कहूँ
तो
आज तक अकेला हूँ मै
हजारो की भीड़ में
दोस्तों की महफ़िल में
कालेज की कंटीन में
घर वालो के साथ भी
आज कल तो ख्वाबो में भी
बहुत तनहा हूँ मै
हाँ सच में अकेला हूँ मै
हाँ पगली
अब सुबह कोई
गुड मोर्निंग का मैसेज
नहीं करता,,,
अब मै चाय की प्याली ले शाम
छत पर भी नहीं टहलता
और हाँ वो मोहल्ले का मन्दिर
जहाँ रोज ही रात
आरती में हम मिलते थे
अब वहा नहीं जाता
पर हाँ
ज़ब शहर की उन पुरानी गलियों
से हो गुजरता हूँ
तब
तुम बहुत याद आते हो..
वो गलियां
जहाँ
हम हाथ में हाथ डाले
न जाने कितने
वादे करते हुए
घुमा करते थे घंटों ...
याद है न तुम्हे
कितना हँसती थी तुम
मेरी उन फिजूल की बतों पर....
हाँ वो हसी आज भी
गूंजती है इन फिजाओ में...
पर अब क्या
तुम दूर हो गयी मुझसे
बहुत दूर..
सिर्फ धुंधली यादो का रिश्ता है तुमसे....
पर मै झूठ नहीं कहता
बेशक
तुम्हे खोकर उस शाम
मैंने कहा था तुमसे
तुम जैसी बहुत मिलेंगी
आज तक अकेला हूँ मै
बहुत अकेला........
अविनाश मिश्र
तुम्हे खोकर उस शाम
मैंने तुमसे कहा था
तुम जैसी बहुत मिलेंगी
पर सच कहूँ
तो
आज तक अकेला हूँ मै
हजारो की भीड़ में
दोस्तों की महफ़िल में
कालेज की कंटीन में
घर वालो के साथ भी
आज कल तो ख्वाबो में भी
बहुत तनहा हूँ मै
हाँ सच में अकेला हूँ मै
हाँ पगली
अब सुबह कोई
गुड मोर्निंग का मैसेज
नहीं करता,,,
अब मै चाय की प्याली ले शाम
छत पर भी नहीं टहलता
और हाँ वो मोहल्ले का मन्दिर
जहाँ रोज ही रात
आरती में हम मिलते थे
अब वहा नहीं जाता
पर हाँ
ज़ब शहर की उन पुरानी गलियों
से हो गुजरता हूँ
तब
तुम बहुत याद आते हो..
वो गलियां
जहाँ
हम हाथ में हाथ डाले
न जाने कितने
वादे करते हुए
घुमा करते थे घंटों ...
याद है न तुम्हे
कितना हँसती थी तुम
मेरी उन फिजूल की बतों पर....
हाँ वो हसी आज भी
गूंजती है इन फिजाओ में...
पर अब क्या
तुम दूर हो गयी मुझसे
बहुत दूर..
सिर्फ धुंधली यादो का रिश्ता है तुमसे....
पर मै झूठ नहीं कहता
बेशक
तुम्हे खोकर उस शाम
मैंने कहा था तुमसे
तुम जैसी बहुत मिलेंगी
पर सच कहूँ
तो आज तक अकेला हूँ मै
बहुत अकेला........
अविनाश मिश्र